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मुख्यमंत्री सुपोषण योजना से जुड़ी दादी-नानी : सिखा रहीं स्वस्थ जीवन व्यवहार आदिवासी क्षेत्र दंतेवाड़ा में ‘बापी न उवाट‘ यानी ‘जाने दादी के नुस्खे‘ से स्थानीय बोली में लोगों को जागरूक करने अभिनव पहल

  दादी-नानी के पास बच्चों के अच्छे लालन-पालन के लिए न सिर्फ अनुभव का खजाना होता है बल्कि वह प्यार-मनुहार से बच्चों से हर छोटी-छोटी बात मनवा ...

 


दादी-नानी के पास बच्चों के अच्छे लालन-पालन के लिए न सिर्फ अनुभव का खजाना होता है बल्कि वह प्यार-मनुहार से बच्चों से हर छोटी-छोटी बात मनवा लेती हैं। आदिवासी और नक्सल प्रभावित क्षेत्र दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा में बुजुर्ग महिलाओं के इन्हीं ममत्व, अनुभव और ज्ञान का उपयोग मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए किया जा रहा है। यहां यूनिसेफ के सहयोग से स्थानीय बोली में ‘बापी न उवाट‘ अर्थात ‘जाने दादी के नुस्खे‘ के नाम से एक अभिनव पहल की गयी है। इसमें गांव की बुजुर्ग महिलाओं के माध्यम से लोगों को कुपोषण मुक्त और स्वस्थ बनाने की मुहिम शुरू की गई है। दिसंबर 2020 में शुरू किए गए इस अभियान से दंतेवाड़ा के 239 गांव की बापियो यानि बुजुर्ग महिलाओं को जिला प्रशासन के द्वारा सुपोषण अभियान से जोड़ा गया है। अब ये बुजुर्ग महिलाएं (बापियां) दंतंवाड़ा में मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान की ब्रांड एंबेसेडर बन चुकी हैं।





छत्तीसगढ़ में 2 अक्टूबर 2019 से शुरू हुए मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान से आदिवासी बहुल दन्तेवाड़ा के कुपोषण दर में कमी आई है। अभियान के शुरू होने से अब तक 2 हजार 168 बच्चे कुपोषण से मुक्त हो चुके हैं और कुपोषित बच्चों की संख्या में 27 प्रतिशत की कमी आई है। अब बापी न उवाट के माध्यम से अंदरूनी क्षेत्रों में जन-जन तक पहुंच कर कुपोषण मुक्त दन्तेवाड़ा बनाने का प्रयास किया जा रहा है। हंसती मुस्कुराती ये दादी-नानियां निःस्वार्थ भाव से लोगों को जागरूक करने में लगी हैं। कटेकल्याण ब्लॉक की 50 वर्षीय सोमली ने बापी बनने के बाद 4 गर्भवती महिलाओं का संस्थागत प्रसव कराया है। सभी मां और बच्चे स्वस्थ हैं। सोमाली बताती हैं कि वह परिवारों को अंधविश्वास को न मानते हुए जीवन जीने की सही दिशा बताती हैं। शिशुवती और गर्भवती महिलाओं के साथ उनके परिवार के लोग भी उनकी बात मानते हैं।


बापियों के ज्ञानवर्धन के लिए यूनिसेफ के माध्यम से समय-समय पर ट्रेनिंग, वर्कशॉप कराने के साथ इन्हंे स्थानीय बोली में संचार और संवाद की वस्तुएं भी उपलब्ध कराई गई हैं। बापी अपनी स्थानीय भाषा जैसे हल्बी, गोंड़़ी में ही गांव के लोगों को कुपोषण मिटाने,दस्त प्रबंधन,गर्भवती महिलाओं का ख्याल, किशोरावस्था के दौरान स्वस्थ व्यवहार, पोषण बाड़ी और अच्छी आदतों को अपने दैनिक जीवन में शामिल करने के बारे में समझाती हैं जिसका अच्छा प्रभाव पड़ रहा है। लोग बापी की बातों को मान रहें हैं और स्वस्थ व्यवहारों को अपना रहें हैं, इससे आंगनबाड़ी और मितानिनों को भी मदद मिल रही है।

    बापी गर्भवती और शिशुवती महिलाओं की देख-रेख, खान-पान और सुखी जीवनशैली पर ध्यान दे रहीं हैं। इन महिलाओं के साथ ही इनके घर-परिवार के लोगों को भी पोषक आहारों, स्वच्छता, टीकाकरण, बच्चे की देखभाल जैसे तमाम जानकारियों से अवगत भी करा रही हैं। बापियों की मदद के लिए हर ब्लॉक में एक-एक बापी कोआर्डिनेटर भी रखे गए हैं। ये कोआर्डिनेटर बापियों को सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी देने, उनकी ट्रेनिंग के साथ उनके कार्य का निरीक्षण भी करते हैं। इससे लोगों में सकारात्मक बदलाव दिखने लगा है। समय पर गर्भवतियों और बच्चों का टीकाकरण किया जा रहा है। जिले में बापियों की अब एक नई पहचान बन चुकी हैं।

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