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​​​​​​​जनजातीय परंपराओं, संस्कृति, बोली-भाषा को सहेजने और उस पर हमें गर्व करने की है जरूरत: राज्यपाल अनुसुईया उइके

  राज्यपाल अनुसुईया उइके कबीरधाम जिले के पीजी कॉलेज ऑडोटिरियम में आयोजित बैगा-आदिवासी महासम्मेलन कार्यक्रम में शामिल हुई। राज्यपाल एवं अति...

 


राज्यपाल अनुसुईया उइके कबीरधाम जिले के पीजी कॉलेज ऑडोटिरियम में आयोजित बैगा-आदिवासी महासम्मेलन कार्यक्रम में शामिल हुई। राज्यपाल एवं अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर तथा नागा बैगा-नागा बैगीन के छायाचित्र पर पुष्प अर्पित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। राज्यपाल सुश्री उइके ने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाले समाज के नागरिकों को प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित भी किया।

राज्यपाल उइके ने बैगा आदिवासी समाज को संबोधित करते हुए कहा कि हमारा आदिवासी समाज हमेशा से ही प्रकृति से जुड़ा रहा है। उनकी परंपराओं, धार्मिक आयोजन, लोक नृत्य, संस्कृति में प्रकृति का प्रभाव है। आधुनिक समाज के लिए प्रकृति सिर्फ पर्यावरण है और प्रकृति पर विजय प्राप्त करके ही वे अपने पुरूषार्थ को साबित करते हैं, जबकि जनजातीय समुदाय के लिए प्रकृति पूजनीय है। वे स्वयं को उसका अभिन्न अंग मानते हैं। जनजातीय समुदाय को अपनी परंपराओं, संस्कृति, बोली-भाषा को सहेजने और उस पर गर्व करने की भी जरूरत है। आज की युवा पीढ़ी को भी समुदाय के पारंपरिक ज्ञान को हस्तांतरित किया जाना चाहिए। बैगा आदिवासी समाज का आदिवासी परंपरा-संस्कृति में विशेष योगदान है। यह समुदाय पीढ़ी दर पीढ़ी अपने विशेष परंपरागत जड़ी-बूटी के ज्ञान का उपयोग कर जनजातीय समाज को लाभान्वित कर रहा है। राज्यपाल ने बैगा आदिवासी समाज द्वारा की गई मांगों पर सार्थक विचार करते हुए पूरा करने का आश्वासन भी दिया।

राज्यपाल उइके ने कहा कि बैगा हमारे राज्य के 7 विशेष पिछड़ी जनजातियों में से एक है। जब हम जनजातीय समुदायों के विकास की बात करते हैं तो निश्चित रूप से विशेष पिछड़ी जनजातियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सरकार द्वारा जनजातियों के उत्थान के लिए विभिन्न योजनाएं संचालित की जा रही हैं। विकास अभिकरणों का भी गठन किया गया है। इसके बावजूद आज भी इन जनजातियों को शिक्षा, स्वास्थ्य तथा मूलभूत जरूरतों की शत-प्रतिशत् उपलब्धता सुनिश्चित नहीं हो पाई है। उन्होंने कहा कि बैगा जनजातिय जनसंख्या का अधिकांश हिस्सा आज भी निरक्षर है। आंकड़ों के अनुसार बैगाओं में महिलाओं की संख्या पुरूषों से अधिक है लेकिन मात्र 25 प्रतिशत महिलाएं ही साक्षर हो पाई हैं, जो इस जनजाति के पिछड़े होने के कारणों में से एक है। इसलिए हमें इस दिशा में गंभीरता से प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। अशिक्षा के कारण भी यह समाज अपने संवैधानिक एवं कानूनी अधिकारों के प्रति सजग नहीं हो पा रहे हैं। इन्हें शिक्षित कर जागरूकता के माध्यम से ही इनका जीवन स्तर सुधारा जा सकता है।

राज्यपाल सुश्री उइके ने कहा कि छत्तीसगढ़ में उन्नीस जिले अनुसूचित क्षेत्र के अंतर्गत आते है। इन क्षेत्रों में पेसा कानून का प्रावधान किया गया है। केन्द्र शासन के नियमानुसार विशेष पिछड़ी जनजाति निवासियों को नौकरियों में सीधी भर्ती का प्रावधान दिया गया है। उन्होंने कहा कि विशेष पिछड़ी जनजाति की समस्याओं की सुनवाई के लिए 15 दिनों में जन सुनवाई का आयोजन किया जाना चाहिए, जिससे वनांचल में रहने वाले लोगों को शासकीय योजनाओं की जानकारी मिल सके। उन्होंने कहा कि जनजातीय बाहुल्य इलाकों में संविधान की पांचवी अनुसूची के अन्तर्गत विशेष प्रावधान उल्लेखित है। यह सुनिश्चित होना चाहिए कि जनजातीय समुदाय को उनके संविधान प्रदत्त अधिकारों से वंचित न किया जाए। संविधान द्वारा उन्हें दिए गए अधिकारों के प्रति जागरूक करने का प्रयास हो ताकि पांचवी अनुसूची जैसे विशेष प्रावधानों से उन्हें संरक्षण मिले।

बैगा आदिवासी महासम्मेलन कार्यक्रम में बैगा आदिवासियों द्वारा पारंपरिक मांदर की थाप के साथ करमा नृत्य का प्रस्तुतिकरण किया गया। कार्यक्रम में प्रदेश अध्यक्ष बैगा समाज इतवारी राम मछिया, प्रदेश अध्यक्ष सर्व आदिवासी समाज युवा प्रभाग सुभाष परते, राज्य निर्देशक नेहरू युवा केंद्र खेल मंत्रालय भारत सरकार  श्रीकांत पांडेय, अध्यक्ष बैगा विकास प्राधिकरण पुसुराम बैगा, जिला अध्यक्ष विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा समाज  कामू बैगा, दशमी बाई बैगा सहित बड़ी संख्या में समाज के नागरिक एवं कलेक्टर कबीरधाम रमेश शर्मा सहित जिला प्रशासन के अधिकारी उपस्थित थे।

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