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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर जानिए लेफ्टनेंट जनरल माधुरी कानिटकर की संघर्ष की कहानी,जो पिता की मौत पर भी नहीं जा पायीं थीं घर

  भारतीय सशस्त्रबलों में लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर पहुंचने वाली तीसरी महिला और पहली बाल रोग विशेषज्ञ माधुरी कानिटकर का सफर अपने आप में प्रेरण...

 


भारतीय सशस्त्रबलों में लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर पहुंचने वाली तीसरी महिला और पहली बाल रोग विशेषज्ञ माधुरी कानिटकर का सफर अपने आप में प्रेरणादायक है. हम ने उनके सफर को लेकर खास बातचीत की. लेफ्टिनेंट जनरल ने अपने सफर के बारे में बात करते हुए बताया कि, “मुझे लगता है महिला अगर फौज में आती हैं तो परिवार का साथ भी जरूर मिलेगा. क्योंकि फौज में सिर्फ अपना परिवार नहीं होता, पूरा फौज एक परिवार होता है. कई बार ऐसा हुआ कि मेरे बच्चों की देखभाल मेरे सेहियोगियों ने भी की.



मैं अपने पिता की मृत्यु के समय मौजूद नहीं थी लेकिन मेरे साथियों ने उस समय बहुत मदद की. हौसला कई बार कमजोर हुआ. बच्चे छोटे थे तो लगता था कि घर से ना जाऊं उस समय कभी मां बाप ने तो कभी पति ने साथ दिया. कभी साथियों का साथ भी मिला."



सीनियर्स की डांट और उनसे सीखना हर जूनियर की प्रोफेशनल जिंदगी में अहम भूमिका निभाता है. कुछ ऐसा ही माधुरी जी के साथ भी हुआ, वो कहती हैं कि "हमारी पहली लेफ्टनेंट जनरल पुनीता अरोरा हैं, एक बार उन्होंने मुझे लेक्चर दिया तो कभी प्यार भरी डांट भी पड़ी. दरअसल मेरा बेटा दसवीं कक्षा के बोर्ड में जाने वाला था, इस दौरान वो बोला कि "मम्मी आप अब पठानकोट जा रहे हैं,मैं और स्कूल नही बदलूंगा", बेटी 5 साल की थी और उसे एपिलेप्सी बीमारी हो गई थी वहीं पति हिसार में पोस्टेड थे. तब मुझे लगा कि हमारे चार लोगों का परिवार तीन में बंट रहा है और मैंने सोचा था अब नौकरी छोड़ दूं. लेकिन मेरी सीनियर के हौसले और उनकी डांट ने आज यहां तक पहुंचा दिया है"



अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं से यही कहूंगी कि जहां गलती हो रही है वहां बिल्कुल चुप ना रहें. जिम्मेदार बनें, कभी मतलबी ना बनें और जिंदगी में भरपूर मेहनत करने से ना कतराएं तो सफलता हांसिल करने से आपको कोई नही रोक सकता.

 

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