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जाने किस गुरुद्वारे में होती है हर साल मधुबाला के नाम पर अरदास, पढ़ें- दिलचस्प किस्सा

    दिल्ली:   अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री मधुबाला की पैदाइश तो एक मुस्लिम परिवार में हुई थी लेकिन गुरुनानक देव के प्रति उनकी दीवानगी का आल...

 


 दिल्ली: अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री मधुबाला की पैदाइश तो एक मुस्लिम परिवार में हुई थी लेकिन गुरुनानक देव के प्रति उनकी दीवानगी का आलम यह था कि आखिरी वक़्त तक उनके पर्स में "जपुजी साहिब" की किताब मौजूद रही. फ़ारसी भाषा में लिखे जपुजी साहिब का पाठ हर रोज करने वाली मुमताज जहां देहलवी यानी मधुबाला जब अपने कैरियर की बुलंदी पर थीं, तब फ़िल्म निर्माताओं से उनकी एक ही शर्त होती थी कि वे पूरे साल देश-दुनिया में कहीं भी शूटिंग करती रहेंगी लेकिन गुरुनानक देव जी के जन्मोत्सव यानी गुरुपर्व पर वह मुंबई के अंधेरी गुरुद्वारे में मौजूद रहेंगी. अपनी इस शर्त को वे प्रोड्यूसर के साथ होने वाले एग्रीमेंट में भी लिखवा लेती थीं.



उस दौर के संगीत निर्देशक एस महेन्द्र के मुताबिक मधुबाला के इस राज का खुलासा तब हुआ,जब एक दिन किसी फ़िल्म के सेट पर अगले शॉट की तैयारी चल रही थी. इस दौरान खाली वक़्त में मधुबाला ने अपने पर्स में से एक छोटी-सी किताब निकाली और अपना सिर ढककर उसे पढ़ने लगीं. कुछ देर बाद उन्हें बुलावा आ गया कि अगला शॉट तैयार है. वे अपना पर्स और वह किताब महेंद्र जी के जिम्मे छोड़ शॉट देने के लिए चली गईं. जब एसमहेंद्र ने किताब खोलकर देखी तो वह फारसी भाषा में लिखा जपुजी साहिब था.



शूटिंग से फारिग होने के बाद महेंद्र ने जब उनसे इस बारे में पूछा तो मधुबाला ने बताया, "सब कुछ होने के बावजूद मैं भीतर से पूरी तरह टूट चुकी थी. तब एक दिन मेरे एक जानकार अंधेरी के गुरुद्वारे में ले गए. दर्शन के बाद वहां के ग्रंथी को जब मेरी परेशानी के बारे में बताया तो उन्होंने रोज जपुजी साहिब का पाठ करने का सुझाव दिया. चूंकि मुझे गुरमुखी नहीं आती, लिहाज़ा मैंने फारसी भाषा में छपी यह किताब मंगवाई. तबसे मैं इसे बगैर नागा किये पढ़ती हूं. एक अजीब-सा सुकून व शांति मिलती है."



अंधेरी गुरुद्वारे के ग्रंथी बताते हैं कि 1969 में अपनी मौत से सात साल पहले मधुबाला ने इच्छा जाहिर की थी कि वह गुरुनानक देव जी के जन्मोत्सव पर लंगर की सेवा देना चाहती हैं. उस दिन के लंगर पर जितना भी खर्च आता उसका चेक वह गुरुद्वारा कमेटी को दे देती और यह सिलसिला सात साल तक लगातार चलता रहा. उनकी मौत के बाद करीब छह साल तक उनके पिता ने यह सेवा संभाली.



पिता के देहांत के बाद गुरुद्वारा कमेटी और वहां के श्रद्धालुओं ने तय किया कि मधुबाला भले ही सशरीर नहीं हैं लेकिन नानक देव के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा आज भी इस गुरुद्वारे में जीवंत है. लिहाजा हर साल गुरुनानक देव जी के जन्मोत्सव पर होने वाली अरदास में यह बोला जाता है, "है पातशाह, आपकी बच्ची मधुबाला की तरफ से लंगर-प्रशाद की सेवा हाजिर है, उसे अपने चरणों से जोड़े रखना."

 

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